Monday, November 10, 2014

सैंसूं न्यारो घर है म्हारो / दीनदयाल शर्मा




टाबरां री राजस्थानी कविता-

सैंसूं न्यारो घर है म्हारो / दीनदयाल शर्मा

सैंसूं चोखो सैंसूं न्यारो
घर म्हारो है सैंसूं प्यारो
ईंट-ईंट मीणत सूं जोड़ी
जणां बण्यो घर प्यारो-प्यारो।

अेक खुणै में झूलो बांध्यो
म्हे टाबरिया झूलो झूलां
टैम नेम सूं काम करां सै'
पढणो-लिखणो कदी नीं भूलां।

अेक खुणै में बणाई क्यारी
भांत-भंतीला लागरेया फूल
अेक खुणै में पूजा घर है
बणग्यो नित पूजा रौ उसूल।

रळमिल सिंझ्या खाणो खावां
सुख दु:खड़ै री सै' बात करां
माइतां सूं म्हे बंतळ सीखां
पुन रौ घडिय़ो रोजिनां भरां।

थे बी म्हारै घर आवो सा
रळमिल थारी मनवार करां
मिनखपणौ मिनखां सूं सीखां
मिनख बणन रौ म्हे जतन करां।।

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