Saturday, December 4, 2010

औळमौ / दीनदयाल शर्मा


औळमौ / दीनदयाल शर्मा

पांच बरसां री
बेटी मानसी
केठा
क्यूं निराज है

घर रै
एक खुणै में खड़ी
मन्नै देखतांईं
फूट पड़ी

पापा
आपरी जोड़ायत नै
समझाल्यौ
मन्नै लड़ती रैवै

घर-घर खेलूं
तो कैवै पढ

चित्र बणाऊं
तो कैवै पढ

किणी सूं
बात करूं
तो कैवै पढ

काणी सुणाण रौ
कैवूं
तो कैवै पढ

आखै दिन
पढ-पढ'ई
क्यूं कैवै मम्मी

मेरै सूं
बात क्यूं कोनी करै
मम्मी

म्हां सूं
बात कर मम्मी।

दीनदयाल शर्मा की राजस्थानी कविताएं


दीनदयाल शर्मा की राजस्थानी कविताएं

टाबर - 1

टाबर हांसै-मुळकै
अर
करै मीठी-मीठी बातां
टाबर
सदांईं बोलै
सांच

आपां
टाबरां सूं सीखां
आपां
टाबरां ज्यूं दीखां।

टाबर - 2

टाबर सूं
कोई
क्यूं नीं
करै बात

स्यात
इण कारण
कै
टाबर री
हरेक बात में
हुवै सुवाल।

टाबर - 3

टाबर
मार खाण रै
थोड़सीक ताळ पछै
हुज्यै
बीस्या रा बीस्या

टाबर
नीं बांधै गांठ

अर आपां
छोटी सी बात माथै
बांधल्यां घुळगांठ।

टाबर -4

टाबरां नै
नीं खेलणद्यै
मा-बाप
माटी में


माटी सूं
कियां हुवै मोह
टाबरां नै

स्यात
इणी कारण
चल्याजै
थोड़साक बड्डा हुंवतांईं
टाबरिया परदेस।

टाबर - 5

टाबर
कित्ता बोलै सांच
नीं जाणै
बणावटी बातां
जात-पांत

अर
भेदभाव भी
नीं जाणै
टाबर

स्यात जदी हुवै
टाबर
भगवान रौ रूप।