Wednesday, July 14, 2010

राजस्थानी लघु कथावां / दीनदयाल शर्मा




अंतस री पीड़

दरखत री उदासी देख'र बेलड़ी पूछ्यौ-'आज थे इत्ता उदास क्यूं हो?'

दरखत बोल्यौ-'आपणै पाड़ोसी रौ छोरौ भी लीक्खण लाग ग्यौ।'

'तो इण में उदास होण री कांईं बात है। थानै तो राजी होवणौ चाइजै।' बेलड़ी आंख्यां मटकांवती बोली।

दरखत लाम्बी सांस ले'र कैयौ-'दु:ख तो इण बात रौ है कै औ' भी आप रै बापू दांईं कचरौ'इज लिखै।'

'थारौ के ल्यै। थारै भाऊं चोखौ लिखै चायै कचरौ।' बेलड़ी हाथ हलांवती बोली।

'बावळी तन्नै पतौ नीं है। अंतस री पीड़ कुण जाणै। तन्नै ठा' होवणौ चाइजै कै जद पोथ्यां छपै तो म्हांनै बलिदान देवणौ पड़ै।' दरखत लाम्बी सांस छोड़तां थकां कैयौ।

आशीर्वाद

'बेटा, रोटी देसी के? दो दिनां स्यूं भूखी हूँ ।' अस्सी बरसां री डोकरी एक घर रै बारै खड़ी लुगाई स्यूं हाथ पसार'र कैयौ।

'आगै चाल। राममार्या मंगता इत्ता होग्या कै सांस ई को लेण द्यै नीं।' मुंडौ बिचकांवती लुगाई बोली। डोकरी आसीस देवतां थकां कैयौ-अच्छ्या बेटा, भगवान तन्नै सुखी राखै।



1 comment:

  1. सब स्युं पैली.... ब्लॉग जोर-दार बणायो डी डी भाई...अ’र दोन्युं लघु-कथावां बढ़िया...कथा मांय ’पीड़’ नैतिक मूल्यां र’ पतन री पीड़ है.

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