Wednesday, September 22, 2010

Rajasthani baal Sansmaran / Deendayal Sharma

गुरज्यां रौ डर

आजकाल रा गुरजी आपरी क्लास रै टाबरां रौ नांव नीं बता सकै। पण उण टैम रा गुरजी पूरै इस्कूल रै टाबरां रौ नांव याद राखता। बीं टैम गुरज्यां सूं म्हे सगळाई टाबर डरता। पण डर रै साथै-साथै बां रौ म्हे आदरभाव भी भौत करता। क्यूं कै उण टैम रा गुरजी अेक-अेक टाबर अर बींरै परवार सूं जुड़्योड़ा हा।
टाबर इस्कूल आणै में जे कोई आना कानी करतौ या पछै नीं आंवतौ तो गुरजी बीं रै घरां पूग ज्यांवता। आज रै गुरज्यां नै आपरै काम में जे सफल होवणौ है तो आ'नै भी कम सूं कम आपरी क्लास रै टाबर रौ नांव तो याद होवणौ चइ'जै। ईं रै साथै बां रै परवार रौ भी ग्यान होवणौ चइ'जै। जदी' टाबर आपरै गुरज्यां साथै मन सूं जुड़ सकै।
म्हूं दूजी-तीजी में पढतौ जद री बात है। गरम्यां रा दिन हा। इस्कूल में आधी छुट्टी होंवतांईं म्हूं रोटी खाण सारू भाज्यौ-भाज्यौ घरां आयौ। भाजणै रै कारण मौसम रै मुजब डील माथै पसीनौ आ ग्यौ। म्हूं आपरौ कुड़तियौ उतार'र मांची माथै नाख दियौ अर ता'वळै-ता'वळै रोटी खावण लागग्यौ कै कठै'ई मोड़ौ ना होज्यै।
घरां भाभी ही। भाईजी रौ नयौ-नयौ ब्या' होयोड़ौ हो। भाभी गाभा धोंवती-धोंवती मेरलौ कुड़तियौ केठा कद मां'कर लेयगी। म्हूं रोटड़ी खांवतांईं कुड़तियौ ढंूड्यौ। इन्नै-बीन्नै देखूं - पूछूं .....कदी किन्नैई तो कदी किन्नैई...। मन्नै दु'ळमच सी आण लाग्गी......म्हूं झुंझळांवतौ सो बोल्यौ.....'अरै मेरौ कुड़तियौ किन्नै गयौ.....अबै तांईं खोल'र मांची माथै नाख्यौ हो.......मन्नै इस्कूल नै मोड़ौ होवण लागर्यौ है.......।
जदी' कोई बोल्यौ, 'तेरी भाभी नै पूछ दिखाण.....।
म्हूं भाज्यौ-भाज्यौ भाभी कन्नै जार पूछ्यौ, 'भाभी मेरौ कुड़तियौ देख्यौ के?
'बौ' है के.....? तणी कानी हात करतां थकां भाभी बोली।
म्हूं देख्यौ कै कुड़तियौ तो तणी माथै सूकण लागयौ है.....।
मन्नै रीस भी आई .....पण नुईं- नुईं आयोड़ी भाभी नै के कै'वूं !
मेरौ चेरौ पढ'र भाभी मुळकती सी बोली, 'कोई और पै'र ज्यावौ। इत्तौ कै'र बातो आपरै काम लागगी।
अबै बीं'नै म्हूं के कै'वूं .........दूजौ कोई चज रौ कुड़तियौ हो कोनी.... जिकौ इस्कूल पैर चल्यौ जाऊं। अेक कानी कुड़तियै आळी परेस्यानी अर दूजै पासै गुरज्यां री मार रौ डर। कोई टाबर बिना मतलब इस्कूल सूं घरे रैज्यांवतौ तो बै' बीं'री झाम कस देंता...कूट-कूटर मूंज बणा देंता..।
म्हूं बां'री मार सूं डरतौ उघाड़ौ'ई चाल पड़्यौ इस्कूल कानी। इस्कूल में बड़तांईं गुरजी री निजर मेरै माथै पड़ी। बै मन्नै देखतांईं थोड़ा रीसां में बोल्या, अरै कुण........ दीनदयाल.....!
'हां जी।
'हां जी रा बच्चा........... औ' के सांग कर राख्यौ है रै.....?
'गुरजी, कुड़तियौ तो मेरी भाभी धो दियौ जी..... । म्हूं सोच्यौ कै इस्कूल नीं गयौ तो गुरजी मारैगा.....इण कारण म्हूं उघाड़ौई आ ग्यौ जी।
बै रीसां में धमकांतां बोल्या, जा.....गीलौ'ई पैरिया.....। सरम कोनी आवै...इस्कूल में इंयां'ईं आ ग्यौ......।
म्हूं मन ई मन बोल्यौ, ईंयां'ईं कठै आ ग्यौ, पैंट तो पै'र राखी है... पण बानै बोलर कैणै री हिम्मत नीं' होई।
'खड़्यौ-खड़्यौ के सोचै...जा गीलौ'ई पैरिया जा...। बां रीसां में कै'यौ।
अर म्हूं कुड़तियौ लेण नै घर कानी भाज्यौ......।
रस्तै में कदी गुरजी माथै रीस आवैई तो कदी भाभी पर...... घरां आयौ...... तणी सूं कुड़तियौ उतार'र पै'रण लाग्यौ तो भाभी बोली, 'दीनदयाल जी.....ईंयां के करो......! कुड़तियौ गील्लौ है नीं.......!
'गील्लौ तो मन्नै'ई दीखै........। म्हूं कुड़तियौ पै'रतौ - पै'रतौ बोल्यौ, 'और के करूं तो...!
भाभी मेरै कन्नै आ'र बोली, 'ल्यावौ मन्नै द्यौ.......चूल्है री आंच में थोड़ौ सुकाद्यंू।
'रै'णदे भाभी मन्नै मोड़ौ होवै..। म्हूं कुड़तियै रौ आखरी बटण बंद करतौ बोल्यौ।
'ईंयां के करौ....... गील्लौ'ई पैर लियौ...! गुरजी मारैगा कोनी के...? म्हूं चूल्है री आंच में चटकैसी सुका देस्यंू। इत्तौ कै'र भाभी मेरौ कुड़तियौ खोलण लागगी.......। म्हूं पत्थर री मूर्ति दांईं खड़्यौ रैयौ .....चुपचाप..। भाभी कुड़तियौ खोल'र चूल्है कानी लेयगी। म्हूं भी बींरै साथै-साथै ई.....।
'चटकौ कर भाभी मोड़ौ होवै नीं.......!
'बस दो मिण्ट.....। कैर भाभी कुड़तियै नै चूल्है री आंच में सुकाण लागगी।
अर म्हूं ता'वळै - मोड़ै रै चक्कर में फूंकणी ले'र चूल्है में फूंक मारण लागग्यौ। म्हूं सोच्यौ कै चूल्हौ ढंग सूं जग ज्यै तो कुड़तियौ चटकै सूक ज्यै। चाणचकौ'ई चूल्हौ हबड़ दणी सी जग्यौ.......। अर कुड़तियै री अेक बाजू रबड़ दांईं भेळी होयगी.....। आ देख'र भाभी धोळी होयगी.......अर म्हूं भी देखतोई रैग्यौ।
भाभी कदी मुळकै.......अर कदी अफसोस करै.....। बा' बोली, 'चूल्है में फूंक नीं मारता तो औ कुड़तियौ ईंयां कोनी होंवतौ......।

'तो अबै .....के पै'र'र जाऊं मैं?
कुड़तियै नै चोखी तरियां खोल'र देखता थकां भाभी बोली, 'अेक इलाज हो सकै.....। देखूं दिखाण..। इत्तौ कै'र भाभी साळ कानी चाल पड़ी।
म्हूं चुपचाप बीं'रै लारै-लारै.....। मन्नै दु'ळमच सी आण लागगी। म्हूं बोल्यौ, 'भाभी, मन्नै मोड़ौ होण लागर्यौ है नीं...!
'अेक मिण्ट रुकौ.....।
अर बण कतरणी ले'र कुड़तियै री दोनूं बाजुआं नै आधी-आधी काट'र बराबर-बराबर कर दी। पछै मन्नै कुड़तियौ पकड़ांवती बोली, 'अबै ठीक है नी......?
म्हूं के कै'वै हो.....। फटाईफट गळ में कुड़तियौ घाल'र भाज पड़्यौ इस्कूल कानी......। कै कठै'ई मोड़ौ होग्यौ तो गुरजी लत्ता ले ल्यैगा.....।

दीनदयाल शर्मा की राजस्थानी कृति 'बाळपणै री बातां' से साभार






1 comment:

  1. भोत ई बढ़िया प्रस्तुति है जी ......

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