Saturday, December 18, 2010

संस्मरण : बाळपणै री बातां / दीनदयाल शर्मा


औ के सांग कर राख्यौ है रै...?

म्हूं तीसरी मे पढतौ जद री बात है। गरम्यां रा दिन हा। इस्कूल में आधी छुट्टी होंवतांईं म्हूं रोटी खाण सारू भाज्यौ-भाज्यौ घरां आयौ। भाजण रै कारण मौसम रै मुजब डील माथै पसीनौ आ ग्यौ। म्हूं आपरौ कुड़तियौ उतार'र मांची माथै नाख दियौ अर तावळै-तावळै रोटी खावण लागग्यौ कै कठैई मोड़ौ ना हुज्यै। घरां भाभी ही। भाईजी रौ नूंवौ- नूंवौ ब्याव होयोड़ौ हो। भाभी गाभा धोंवती-धोंवती मे'रलौ कुड़तियौ केठा कद मां'कर लेयगी। म्हूं रोटड़ी खांवतांईं कुड़तियौ ढंूड्यौ। इन्नै-बीन्नै देखंू-पंूछूं .....कदी किन्नैई तो कदी किन्नैई...। मन्नै दुळमच सी आण लाग्गी......म्हूं झुंझळांवतौ सो बोल्यौ.....अरै मेरौ कुड़तियौ किन्नै गयौ.....अबै तांईं खोल'र मांची माथै नाख्यौ हो.......मन्नै इस्कूल नै मोड़ौ होवण लागर्यौ है.......।
जदी कोई बोल्यौ, 'तेरी भाभी नै पूछ दिखाण.....।'
म्हूं भाज्यौ-भाज्यौ भाभी कन्नै जा'र पूछ्यौ, 'भाभी मेरौ कुड़तियौ देख्यौ के?'
बौ है के?.....तणी कानी हात करतां थकां भाभी बोली।
म्हूं देख्यौ कै कुड़तियौ तो तणी माथै सूकण लागर्यौ है.....।
मन्नै रीस भी आई .....पण नंूवीं-नंूवीं आयोड़ी भाभी नै के कैवंू!
मेरौ चे'रौ पढ'र भाभी मुळकती सी बोली, कोई और पै'र ज्यावौ। इत्तौ कै'र बा तो आपरै काम लागगी।
अबै बींनै म्हूं के केऊं......दूजौ कोई चज रौ कुड़तियौ को'इनी.... जिकौ इस्कूल पै'र चल्यौ जाऊं। अेक कानी कुड़तियै आळी परेस्यानी अर दूजै पासै गुरज्यां री मार रौ डर। कोई टाबर बिना मतलब इस्कूल स्यूं घरे रैज्यांवतौ तो बै' बीं'री झाम कस देंता...कूट-कूट'र मंूज बणा देंता..।
म्हूं बांरी मार स्यूं डरतौ उघाड़ौई चाल पड़्यौ इस्कूल कानी। इस्कूल में बड़तांईं गुरजी री निजर मेरै माथै पड़ी। बै' मन्नै देखतांईं थोड़ा रीसां में बोल्या, अरै कुण...सीरीराम..।
'हां जी।'
'हां जी रा बच्चा....औ के सांग कर राख्यौ है रै...?'
गुरजी, कुड़तियौ तो मेरी भाभी धो दियौ जी.....। म्हूं सोच्यौ कै इस्कूल नीं गयौ तो गुरजी मारैगा.....इण कारण म्हूं उघाड़ौई आ ग्यौ जी।
बै' रीसां में धमकांतां बोल्या, जा.....गीलौई पैरिया.....। सरम कोनी आवै...इस्कूल में र्इंयांईं आ ग्यौ......।
म्हूं मन ई मन बोल्यौ, ईंयांईं कठै आ ग्यौ, पैंट तो पै'र राखी है... पण बानै बोल'र कैणै री हिम्मत नीं होई।
खड़्यौ-खड़्यौ के सोचै...जा गीलौई पैरिया जा...। बां' रीसां में कैयौ।
अर म्हूं कुड़तियौ लेण नै घर कानी भाज्यौ......।
रस्तै में कदी गुरजी माथै रीस आवैई तो कदी भाभी पर...... घरां आयौ......तणी स्यूं कुड़तियौ उतार'र पै'रण लाग्यौ तो भाभी बोली, सीरीराम जी.....ईंयां के करो......! कुड़तियौ गील्लौ है नीं.......!
गील्लौ तो मन्नैई दीखै........म्हूं कुड़तियौ पैरतौ - पैरतौ बोल्यौ, और के करूं तो...!
भाभी मेरै कन्नै आ'र बोली, ल्यावौ मन्नै द्यौ.......चूल्है री आंच में थोड़ौ सुकाद्यंू।
रैणदे भाभी मन्नै मोड़ौ होवै..। म्हूं कुड़तियौ आखरी बटण बंद करतौ बोल्यौ।
ईंयां के करौ....... गील्लौई पै'र लियौ...! गुरजी मारैगा कोनी के...? म्हूं चूल्है री आंच में चटकैसी सुका देस्यूं । इत्तौ कै'र भाभी मेरौ कुड़तियौ खोलण लागगी.......। म्हूं पत्थर री मूर्ति दांईं खड़्यौ रैयौ .....चुपचाप..। भाभी कुड़तियौ खोल'र चूल्है कानी लेयगी। म्हूं भी बींरै साथै-साथै ई.....।
चटकौ कर भाभी मोड़ौ होवै नीं.......!
बस दो मिण्ट.....। कै'र भाभी कुड़तियै नै चूल्है री आंच में सुकाण लागगी।
अर म्हूं तावळै - मोड़ै रै चक्कर में फंूकणी ले'र चूल्है में फंूक मारण लागग्यौ। म्हूं सोच्यौ कै चूल्हौ ढंग स्यूं जग ज्यै तो कुड़तियौ चटकै सूक ज्यै। चाणचकौई चूल्हौ हबड़ दणी सी जग्यौ.......। अर कुड़तियै री अेक बाजू रबड़ दांईं भेळी होयगी.....। आ' देख'र भाभी धोळी होयगी.......अर म्हूं भी देखतोई रै'ग्यौ।
भाभी कदी मुळकै.......अर कदी अफसोस करै.....। बा'बोली, चूल्है में फंूक नीं मारता तो औ कुड़तियौ ईंयां कोनी होंवतौ......।
तो अबै .....के पै'र जाऊं मैं?
कुड़तियै नै चोखी तरियां खोल'र देखतां थकां भाभी बोली, अेक इलाज हो सकै.....। देखंू दिखाण..। इत्तौ कै'र भाभी साळ कानी चाल पड़ी।
म्हूं चुपचाप बींरै लारै-लारै.....। मन्नै दुळमच सी आण लागगी। म्हूं बोल्यौ, भाभी, मन्नै मोड़ौ होण लागर्यौ है नीं...!
अेक मिण्ट रुकौ.....।
अर बण कतरणी ले'र कुड़तियै री दोनूं बाजुआं नै आधी-आधी काट'र बराबर-बराबर कर दी। पछै मन्नै कुड़तियौ पकड़ांवती बोली, अबै ठीक है नी......?
म्हूं के कैवै हो.....। फटाईफट गळ में कुड़तियौ घाल'र भाज पड़्यौ इस्कूल कानी......। कै कठैई मोड़ौ होग्यौ तो गुरजी लत्ता ले ल्यैगा.....।

बाळपणै री बातां
दीनदयाल शर्मा

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