Wednesday, July 14, 2010

कविता - भींत / दीनदयाल शर्मा


भींत / दीनदयाल शर्मा

म्हे रै'वां

एक घर में

तीन घर बणा'र

अर

भींत ...

भींत क्यूँ देखै

कोई दूजो,

क्यूँ कै

भींत बणा राखी है

म्हे आपरै आपरै

भीतर...


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