Wednesday, July 14, 2010

राजस्थानी दूहा- करम सुधारै काज / दीनदयाल शर्मा

राजस्थानी दूहा-

करम सुधारै काज / दीनदयाल शर्मा

सुरसत बैठी सा'मणै, चित्तर दिखावै च्यार।

बेदां नै तूं बांचले, पाछै कलम पलार।। 1

बैठ्यौ क्यूं है बावळा, टैम लाखिणी टूम।

मे'नत कर तूं मोकळी, झूम बराबर झूम।। 2

घोचो मुंडै क्यूं घालै, करले कोई काम।

घोचो बणसी घेसळौ, लूंठां लोग लगाम।। 3

खाली नां कर खोरसौ, करम सुधारै काज।

भायां में भारी पड़ै, रोज करैलौ राज।। 4

जीभ चटोरी जोरगी, लपरावै क्यंू लार।

रूखी खा ले रोटड़ी, जिनगी रा दिन च्यार।। 5

बातां मत कर बावळा, समझ टैम रो सार।

घट-बध नीं होवै घड़ी, रै'वै अेक रफ्तार।। 6

मे'नत स्यंू मालक बणै, बधता जावै बोल।

गांव गु'वाड़ी गोरुवैं, ढम-ढम बाजै ढोल।। 7

मिनखजमारौ मोवणौ, हरख राख तूं हीय।

लुक्खी सूखी खायके, पालर पाणी पीय।। 8

काम अेक नीं तूं करै , पड़सी कियां पार।

सुपणां लेवै सो'वणां, सांचौ बण सरदार।। 9

मनड़ा मीठा मो'वणां, बंूदी-लाडू बोल।

सगळा करै सरावनां, आखौ कै' अनमोल।। 10

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