जागिये री मा बोली
सुणो के स्याणो
जगियो लागे मन्ने
घणो अणखाणो
दसवीं में
बड्गर,
रै'ग्यो च्यार बार
थे कद ताईं
खिंचोगा
एक गाडो परिवार,
केठा इन्ने
कद अक्कल
आ 'सी,
मन्ने तो लागे
छोरो
हाथां सूं जा 'सी,
या तो इण रै नाक में
नकेल घाल द्यो चटके,
फेर आपणे भलांईं
चाये ठोड़ ठोड़ भटकै,
अर दसुन्वें ईं दिन
बीनणी घर में आ'गी,
उठतां जागतां
जागिये रा
बा ' कान
खींचण लागगी,
मिनो'ईं नीं होयो
घर रो
भाग जाग ग्यो,
अर एक
प्राइवेट इस्कूल में
जागियो मास्टर लागग्यो ..
- दीनदयाल शर्मा.
hasy kavita Srijan 1989 by Deendayal Sharma
Caricature Srijan by Dr. Roop chandr Shastri 'Mayank' May 2010
मज़ो तो अब आयो है...मेरी पसंद की कविता.
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